Tuesday, 19 May 2020

ज़ुल्म नहीं , कत्ल है।

कागज़ की कश्ती पर ,
उम्मीदों का भार लादते हो ।
किसी के फटे जूते देखकर ,
उसकी औकात नापते हो।।

तो सुनलो,
यह ज़ुल्म नहीं कत्ल है,
कत्ल है इंसानियत का,
कत्ल है जम्हूरियत पर विश्वास का ,
कत्ल है उन आसुओं से भरी आंखों में हुकमरे का।

अगर तुम पर भी यह ज़ुल्म हुआ है तो सुनलो ,
अगर तुम्हारी बातें सुने बिना ही , तुम्हे झूठा बताया है तो सुनलो ।
तुम्हे इन सबको बताना है,
अपनी मासूमियत से सबको सताना है।

यह पुरानी शर्ट और फटे जूते ,
मेरी औकात नहीं सादगी है ।
तुम्हारे लिए यह तुच्छ होगा ,
किसी के लिए शहजादगी है।

दुख है कि यह सब भी बताना पड़ रहा है,
जताना नहीं चाहता था फिर भी जताना पड़ रहा है।।
                         - अरूणाभ मिश्रा (शंख)

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