क्या विदेश में रह रहे भारतीय , भारत में रह रहे भारतीयों से ज्यादा पूजनीय है? क्या ग्रामीण इलाकों में रहने वालो की जान की कोई कीमत नहीं है ? तो फिर क्यों मजबूर है वो किसान , मजदूर रेल की पटरियों पर सोने के लिए , क्यों मजबूर है पैदल हजारों मील सफर तय करने के लिए , क्या उन्होंने ने सरकार के चयन में अपना योगदान नहीं दिया था क्या? विदेश से लोग लाने के लिए हवाई जहाज तक चल जाते है पर इन दिहाड़ी मजदूरों का क्या? इनके लिए एक बस भी नहीं चला सकते क्या? हा बस चलेगी तो भारी किराया भी लेंगे क्योंकि इन्हीं बसो से ही तो अर्थव्यवस्था संभाली जायेगी और विदेश से लोग मुफ्त में आएंगे । बात मात्र पैसे की नहीं है , बात है उस जान की कीमत की , और ये बात अब की नहीं है सदियों से यही चलता आ रहा है , पुल गिरते है , गैस लीक होती है , आम जनता मरती है, कुछ लाख रुपयों के मुआवजों में तौल दिया जाता है। यह मात्र कोई दुर्घटना नहीं है , समझदार लोगों की नासमझी का नतीजा है । सीधा सवाल है इतने सारे लोगो की मौत का जिम्मेदार कौन है ?
ARUNABH Mishra (शंख )
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