यह ' शायद ' किसी पोशाक की तरह उसके लब्ज़ो पर छाया रहता है ,
अब उस खंडहर जगह पर वह नहीं , उसकी तस्वीर या साया रहता है।
यह 'शायद' शब्द कोई अतरंगी लिबाज़ है ,
या उन सभी सवालों के जवाब देने का कोई अनोखा अंदाज़ है।
इस 'शायद' में 'हाँ' है या 'ना' है ,
इस 'शायद' से ही तुम्हारे सारे जवाब है ,
यह शायद 'सराब' है हम प्यासों के लिए ख़राब है। सराब =mirage
यह 'शायद' ही है जिसने सरकारें पलटी है , घर तोड़े है ,
यह 'शायद' ही है जिसने 'जवाल और उरूज' में बहुतों के सपने जोड़े है। जवाल और उरूज = ups and downs
'शायद' सपना है या किसी गुमशुदे की लौटने की आस है ,
यह 'शायद' झूट है , इसमें मिठास है ,और तुम्हे लोगो की प्यास है।
वह फौजी भी जब जाता है तो शायद' घर छोड़ आता है ,
वह जिन्दा है या अमर हो गया इसका उत्तर भी तो 'शायद' ही बतलाता है।
'शायद' आज साँस ले रहा हूँ , शायद कल थम जाये ,
'शायद' हौसला टूटे और मेरे सारे ख़्वाब मर जाएं।।
अरुणाभ मिश्रा (शंख)
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ReplyDeleteइस कविता को पढके एक अलग सा एहसास है,
ReplyDeleteक्योंकि शायद इन अल्फाजों से मेरा भी इत्तेफाक है,
इसीलिए शायद ये कविता कुछ खास है...कुछ खास है। ।