Sunday, 17 May 2020

अब बस ! और नहीं ।

ज़िन्दगी से थक हार के,
आज मै बिस्तर पर पड़ा हूं।
मां इस ज़ख्मी हालत में,
मैं इस दुनिया से बहुत लड़ा हूं।।

सुनो , मै एक राज़ कहता हूं ,
एक नए युग का आगाज़ कहता हूं।
इस जीवन में नकामियाबी भी देखी है मैंने ,
इसलिए थोड़ा उदास रहता हूं।

पर , अब हस्ता हूं,
उन विचारों पर ,उन सवालों पर ,
उन सवालों के बेबुनियाद जवाबों पर ,
अब हस्ता हूं , अब हस्ता हूं खुद पर ।

तुम्हे मालूम है ना ?
मेरे अंदर एक शमशान भी है।
मैंने हर उस व्यक्ति को यहां दफनाया है,
जिसने मुझे छोड़ कर किसी और को अपनाया है।

तुम खुद को इन पंक्तियों में मत ढूंढ़ो,
यह सब ना एक राज़ है,
तुम उलझ जाओगी,
समय आने पर एक-एक बात समझ जाओगी।

अब बस! और नहीं।
मेरी कहानियां असली है पात्र काल्पनिक हैं,
मेरे विचार धार्मिक और शैली आधुनिक है ।
जो सही है ,वह यहां सही नहीं।
अब बस! और नहीं ।
                            - ARUNABH MISHRA
                                       (शंख)

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