Wednesday, 26 August 2020

तुम

तुम 

खैर मैं अब तक सोच ही रहा हूँ , क्या लिखूं?

क्या वो किसी दिन हमारा यूँही  मिलने का वादा लिख दूँ ,

या तुम्हारा आसमान छूने का इरादा लिख दूँ। 


वह दिसंबर की सर्द रातों के बारे में,

 या हमारे बीच हुई अनगिनत  बातों के बारे में लिख दूँ ?


सोच रहा हूँ तुम्हारा यूँ अजनबी से खास बनना लिख दूँ ,

या फिर जो बातें तुमसे साझा की है, वो सारी बातें लिख दूँ ?


सोच रहा हूँ तुम्हारे सारे राज़ लिख दूँ,

तुम्हारी इस नयी कहानी का आगाज़ लिख दूँ ?


सोचता हूँ कुछ तुम्हारी खूबसूरती पर लिख देता हूँ ,

फिर कही तुम इतराने न लग जाओ यही सोच कर अपनी कलम रोक लेता हूँ। 


ये कविता अधूरी है,

 अधूरी हो तुम और तुम्हारे सारे वादे।। 


                              -अरुणाभ मिश्रा 


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