तुम्हे पता है , वह आज भी मेरे सपनो में आते हैं ,
परियों की दुनिया की सारी दास्तान सुनाते हैं,
मुझे बताते हैं की जो काम यहाँ अधूरा छोड़ गए थे, उसे वहाँ मुकम्मल करते हैं ,
बताते हैं , कि मुझे भूले नहीं हैं , मेरी यादों को याद करके मुसलसल रोते हैं।
पता हैं , वह चले गए,
चले गए कहीं दूर , कि वहाँ सिर्फ मेरी फ़रियाद जा सकती हैं ,
और बदले में सिर्फ उनकी याद आ सकती हैं।
काश, महज़ सिर्फ काश से ही आस है ,
अब देह नहीं , सिर्फ बातें और मखमली एहसास है।
एहसास है बातों का , जज़बातों का ,
एहसास है तो सिर्फ उन नरम और गर्म हाथों का।
सुना था , धन से गरीब और वस्त्र से फ़कीर थे ,
पर आत्मसम्मान और आशीर्वाद से अमीर थे।
सवाल ये है की अब यह क्यों?
कौन देखेगा , कौन सुनेगा ,
क्या कोई डाकिया ऐसा भी होगा ,
जो चिट्ठियां वहां पहुँचाता होगा।
देखा था ,
मैंने भी देखा था बहुत ही हठी मिज़ाज़ था,
होगा भी क्यों ना , नाम जो "विश्वनाथ" था।
मुझे बस एक ही मलाल है ,
ज़हन में महज़ एक ही सवाल है ,
की जवानी या आगाज़ में इतनी क्रांति थी ,
तो बुढ़ापे में या अंत में क्यों इतनी शांति थी।
- अरुणाभ मिश्रा (कन्हैया)
शंख से कन्हैया लिखने का सिर्फ इस कविता में एक कारण है।
( इस कविता को नाम देने में हाथ काँप रहा है , अगर कोई पढ़े तो इस बेनाम रचना को नाम ज़रूर देना या इसे बेनाम ही रहने देना )
वो शक्स कौन है मुझे नहीं पता , लेकिन हर शब्द में एक खूबसूरत दर्द है , बेनाम सा ।
ReplyDeleteतो इसे बेनाम ही रहने दीजिए ।
Shayad isliye abtak benaam hi hai
DeleteAarzoo honi chahiye kisi ko yaad karne ki , lamhe apne aap mil jaate hai...kaun puchta hai pinjare me bnd panchiyo ko , yaad wahi aate hai jo udd jaate hai..
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