Tuesday, 19 May 2020

ज़ुल्म नहीं , कत्ल है।

कागज़ की कश्ती पर ,
उम्मीदों का भार लादते हो ।
किसी के फटे जूते देखकर ,
उसकी औकात नापते हो।।

तो सुनलो,
यह ज़ुल्म नहीं कत्ल है,
कत्ल है इंसानियत का,
कत्ल है जम्हूरियत पर विश्वास का ,
कत्ल है उन आसुओं से भरी आंखों में हुकमरे का।

अगर तुम पर भी यह ज़ुल्म हुआ है तो सुनलो ,
अगर तुम्हारी बातें सुने बिना ही , तुम्हे झूठा बताया है तो सुनलो ।
तुम्हे इन सबको बताना है,
अपनी मासूमियत से सबको सताना है।

यह पुरानी शर्ट और फटे जूते ,
मेरी औकात नहीं सादगी है ।
तुम्हारे लिए यह तुच्छ होगा ,
किसी के लिए शहजादगी है।

दुख है कि यह सब भी बताना पड़ रहा है,
जताना नहीं चाहता था फिर भी जताना पड़ रहा है।।
                         - अरूणाभ मिश्रा (शंख)

Sunday, 17 May 2020

अब बस ! और नहीं ।

ज़िन्दगी से थक हार के,
आज मै बिस्तर पर पड़ा हूं।
मां इस ज़ख्मी हालत में,
मैं इस दुनिया से बहुत लड़ा हूं।।

सुनो , मै एक राज़ कहता हूं ,
एक नए युग का आगाज़ कहता हूं।
इस जीवन में नकामियाबी भी देखी है मैंने ,
इसलिए थोड़ा उदास रहता हूं।

पर , अब हस्ता हूं,
उन विचारों पर ,उन सवालों पर ,
उन सवालों के बेबुनियाद जवाबों पर ,
अब हस्ता हूं , अब हस्ता हूं खुद पर ।

तुम्हे मालूम है ना ?
मेरे अंदर एक शमशान भी है।
मैंने हर उस व्यक्ति को यहां दफनाया है,
जिसने मुझे छोड़ कर किसी और को अपनाया है।

तुम खुद को इन पंक्तियों में मत ढूंढ़ो,
यह सब ना एक राज़ है,
तुम उलझ जाओगी,
समय आने पर एक-एक बात समझ जाओगी।

अब बस! और नहीं।
मेरी कहानियां असली है पात्र काल्पनिक हैं,
मेरे विचार धार्मिक और शैली आधुनिक है ।
जो सही है ,वह यहां सही नहीं।
अब बस! और नहीं ।
                            - ARUNABH MISHRA
                                       (शंख)

Wednesday, 13 May 2020

मेरा एक सवाल , सीधा सीधा उत्तर दो

क्या विदेश में रह रहे भारतीय , भारत में रह रहे भारतीयों से ज्यादा पूजनीय है? क्या ग्रामीण इलाकों में रहने वालो की जान की कोई कीमत नहीं है ? तो फिर क्यों मजबूर है वो किसान , मजदूर रेल की पटरियों पर सोने के लिए , क्यों मजबूर है पैदल हजारों मील सफर तय करने के लिए , क्या उन्होंने ने सरकार के चयन में अपना योगदान नहीं दिया था क्या? विदेश से लोग लाने के लिए हवाई जहाज तक चल जाते है पर इन दिहाड़ी मजदूरों का क्या? इनके लिए एक बस भी नहीं चला सकते क्या? हा बस चलेगी तो भारी किराया भी लेंगे क्योंकि इन्हीं बसो से ही तो अर्थव्यवस्था संभाली जायेगी और विदेश से लोग मुफ्त में आएंगे । बात मात्र पैसे की नहीं है , बात है उस जान की कीमत की , और ये बात अब की नहीं है सदियों से यही चलता आ रहा है , पुल गिरते है , गैस लीक होती है , आम जनता मरती है, कुछ लाख रुपयों के मुआवजों में तौल दिया जाता है। यह मात्र कोई दुर्घटना नहीं है , समझदार लोगों की नासमझी का नतीजा है । सीधा सवाल है इतने सारे लोगो की मौत का जिम्मेदार कौन है ?
 ARUNABH Mishra (शंख )