तुम्हे पता है इस बार भी घर नहीं जा पाए वह,
उनके घर पर उनके छोटे छोटे बच्चे इंतज़ार कर रहे थे उनका ,
इंतज़ार कर रहे थे की पापा घर आएँगे तो पटाखे खरीदने जाएंगे ,
बम खरीदेंगे , फुलझड़िया और पता नहीं क्या क्या ,
पर उन्हें कहा पता था की उनके पापा किसी और के साथ सरहद पर दिवाली मना रहे है ,
इस बार भी घर नहीं जा पाए वह।
उन बूढ़े कांपते हाथों ने इस बार भी बेसन के लड्डू बनाये थे पर ,
पर खाने वाला तो किसी और को पीतल तौल रहा था ,
उस माँ की आँखों में आसूं थे उम्मीद थी ,
पर माँ जान चुकी थी की अब उसकी दो दो माएं हैं और वह किसी के साथ नाइंसाफी नहीं करेगा ,
कल तक जो जिम्मेदारियों से भागता था आज उसके कन्धों में पूरे देश की जिम्मेदारी है ,
तुम्हे पता है इस बार भी घर नहीं जा पाए वह ।
उस घर के लिए दिवाली सिर्फ त्यौहार नहीं था ,
एक जरिया था जिसके चलते घर में फिर से खुशहाली आती थी ,
सीमा पर तैनात १ बेटा और वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर बेटा महीनो में कभी घर आया करते थे ,
हाँ वह माँ आज भी याद करके अपने आंसू पोछ लिया करती है कि
कहाँ वह लड़का जो पटाखों की आवाज सुनकर बक्से में छुप जाया करता था ,
आज वही इतने बड़े बड़े गोले बारूदों का साथी बन जाएगा ,
तुम्हे पता है न इस बार भी नहीं जा पाए वह ,
अब तक तो समझ ही गए होगे किसकी बात कर रहा हूँ ।
इस बार जब दीपक जलाओ ना तो १ दीपक उन शहीदों को नमन करते हुए और ,
और १ उस बेटे के नाम जरूर जलाना ॥
-मिSHRA
- अरुणाभ मिश्रा (शंख)
उनके घर पर उनके छोटे छोटे बच्चे इंतज़ार कर रहे थे उनका ,
इंतज़ार कर रहे थे की पापा घर आएँगे तो पटाखे खरीदने जाएंगे ,
बम खरीदेंगे , फुलझड़िया और पता नहीं क्या क्या ,
पर उन्हें कहा पता था की उनके पापा किसी और के साथ सरहद पर दिवाली मना रहे है ,
इस बार भी घर नहीं जा पाए वह।
उन बूढ़े कांपते हाथों ने इस बार भी बेसन के लड्डू बनाये थे पर ,
पर खाने वाला तो किसी और को पीतल तौल रहा था ,
उस माँ की आँखों में आसूं थे उम्मीद थी ,
पर माँ जान चुकी थी की अब उसकी दो दो माएं हैं और वह किसी के साथ नाइंसाफी नहीं करेगा ,
कल तक जो जिम्मेदारियों से भागता था आज उसके कन्धों में पूरे देश की जिम्मेदारी है ,
तुम्हे पता है इस बार भी घर नहीं जा पाए वह ।
उस घर के लिए दिवाली सिर्फ त्यौहार नहीं था ,
एक जरिया था जिसके चलते घर में फिर से खुशहाली आती थी ,
सीमा पर तैनात १ बेटा और वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर बेटा महीनो में कभी घर आया करते थे ,
हाँ वह माँ आज भी याद करके अपने आंसू पोछ लिया करती है कि
कहाँ वह लड़का जो पटाखों की आवाज सुनकर बक्से में छुप जाया करता था ,
आज वही इतने बड़े बड़े गोले बारूदों का साथी बन जाएगा ,
तुम्हे पता है न इस बार भी नहीं जा पाए वह ,
अब तक तो समझ ही गए होगे किसकी बात कर रहा हूँ ।
इस बार जब दीपक जलाओ ना तो १ दीपक उन शहीदों को नमन करते हुए और ,
और १ उस बेटे के नाम जरूर जलाना ॥
-मिSHRA
- अरुणाभ मिश्रा (शंख)
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