हिन्दी हमारे सपनों की
-अरुणाभ मिश्रा
बहुत सरल है ये लिखने में ,
बोल चाल में बड़ी सुरीली ।
और सुनने में यह रसगुल्ला ,
कानों को कर देती गीली ।।
हिन्दी बोले खेल खेल में ,
और लिखने लिखे हिन्दी ।
देश है गूंगा बिन हिन्दी के ,
सबसे पहले सीखे हिन्दी ।।
शहर के हर चौराहे पर हो,
गाँवों के कच्चे मकान में ।
रिक्शे वाला भैया बोले ,
हिन्दी गूँजे वायुयान में ॥
चौपालों पर धूम मचाती ,
और संसद में गूँजती हिन्दी ।
गारु ,अन्ना, दादा, ताऊ और ,
कांछा को सूझती हिन्दी ॥
सब्जी वाला भोला चाचा,
हिन्दी में ही बेंचे भिंडी ।
दूध बेचता गिरधारी भी ,
बड़ी सुरीली बोले हिन्दी ॥
प्रेमी और प्रेमिका बोले ,
प्यार की परिभाषा हिन्दी।
आशीर्वाद पिता का हिन्दी,
और भाई की आशा हिन्दी॥
बहन की राखी में हिन्दी ,
माता की लोरी में हिन्दी ।
गाँवों की अल्हड़ सी हिन्दी ,
शहरो की गोरी में हिन्दी ॥
तुलसी की रामायण हिन्दी ,
गीता में कल्याणी हिन्दी ।
मंदिर , मस्जिद गिरजे ,
द्वारे ,
हर मज़हब की वाणी हिन्दी ॥
सीमा के प्रहरी के मुख से ,
निकले खूब गरजती हिन्दी ।
इसरो के वैज्ञानिक बोले ,
और फिल्मों में लरजती हिन्दी ॥
जनमानस की वाणी है यह ,
भारत के माथे की बिंदी ।
झिलमिल-झिलमिल रहे दमकती,
मेरी प्यारी भाषा हिन्दी॥
-अरुणाभ मिश्रा